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Thursday, July 15, 2010

हम लुटाते हैं रंगमंच के नव रस

आज के बदलते परिवेश में नाट्यकला का स्थान नाममात्र को रह गया है ,
हम ये भी भूल गए हैं या भूलते जा रहे हैं की सभी कलाओं की जननी भारत में नात्याशात्र ही रही है "भरत मुनि के द्वारा लिखित "नाट्यशास्त्र" जिसे पंचम वेद भी कहते हें।

भौतिकवादी इस समाज में हम कुछ नाट्यधर्मी लोग एक नई पहल करने की कोशिश कर रहे हें ।
जिससे हम आपनी जड़ों से भी जुड़े रहे और साथ ही साथ आपका मनोरंजन भी होता रहे ।


presenting a very new form of Indian theatre by "ॐ the existence on stage ".


अक्षय (ॐ)

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